कविता संग्रह >> एक चिनगारी और एक चिनगारी औरडॉ. ओम प्रकाश सिंह
|
0 5 पाठक हैं |
ग़ज़ल संग्रह
एक चिनगारी और...
हिन्दी ग़ज़ल जहाँ मनुष्य की संवेदना को इन्द्रधनुषी आयाम देती है वहाँ वह अपनी बुनावट या कहन के प्रति नयी दृष्टि रखती है। वह उत्तर-आधुनिकता, भूमण्डलीकरण, उदारीकरण, उपभोक्तावादी संस्कृति, वैज्ञानिक सोच और ताजे प्रतीक, बिम्ब, उपमान के प्रति जागरूक है जो आज की ग़ज़ल के विषय हैं। वहाँ वह अपनी रागात्मक प्रस्तुति और अपने कामयाब अंदाज के साथ कोई अन्य समझौता भी नहीं कर सकती क्योंकि न तो वह भारतीय जमीन छोड़ सकती है और न ही उसे हिन्दी-उर्दू मिश्रित शब्दों के मेल से कोई एतराज ही है। उसमें मनुष्य की चहुँमुखी संवेदना को संप्रेषित करने की अद्भुत क्षमता है। गज़ल में जिस अनुभूति और सांकेतिक कहन की जरूरत होती है उसे अब हिन्दी ग़ज़ल बड़ी ही तहजीब के साथ बखूबी कह लेती है। इसलिए कहीं भी उसके फार्म में कमी नहीं दिखाई देती। ये गज़लें रूमानियत के, भारतीय संस्कार के साथ गम्भीर चिंतन, हास्य-व्यंग्य और सामाजिक सोच और समूचे विश्वास को लेकर अग्रसर हैं, इनका भविष्य उज्ज्वल है। इस संग्रह में कुल पैंसठ गज़लें संग्रहीत हैं जो बहुरंगी आकार लेकर अपनी पूरी सजावट के साथ खड़ी हैं।
आशा है कि सुधी पाठक और समीक्षक 'एक चिनगारी और' ग़ज़ल संग्रह की इन ग़ज़लों से साक्षात्कार करेंगे और इनका मार्गदर्शन भी करेंगे।
- डॉ० ओम प्रकाश सिंह
|
- ग़ज़ल-क्रम